सब्बो संगी मन ल राम राम, जय जोहार
संगी हो, आजकाल अंगरेजी
भाखा हर अब्बड़ चलत हे अऊ फुलत-फलत हे। कोट-कछेरी, अस्पताल, इस्कूल-कालेज, नौकरी-चाकरी सब्बो जगह अंगरेजी के अब्बड़ गुन हे। जोन मनखे हर अंगरेजी नई
जान पात हे तेहर पढे-लिखे बेड़ा हो जात हे समझव। देश-विदेश, सहर-नगर, गाँव-गंवई सब
अन एखर बोलोइया-समझोइया हावे। जोन ल हिंदी गोठियाय हर मुड़ पीरा हो जाथे, तहू एक्को
दू सबद तो अंगरेजी मारेच डारथे। अंगरेजी के महिमा काबर नई बाढ़ही, अनतररास्ट्रीय
इस्तर के भाखा हावे। वैश्विक इस्तर म देश के परगति उन्नति के बर अंगरेजी ल तिरयाय
नई जा सकय, ए तो सनसार भर म गोठ-बात ले जोड़े के सुथियार बन गे हावे। लेकिन संगी हो, ई अंगरेजी के हमन जतकी पाछू पडत जात हन ओतकी हमर हिंदी भाखा हर बिगड़त जात
हावे। हिंदी पट्टी के रहोइय्या होके घलो सही हिंदी नई बोल पात हन अऊ संगे संग हमर
गुरतुर गुरतुर छत्तीसगढ़ी बोली नठात जात हावे। एकर एके कारन हे संगवारी, कि हमर पुरखौती बोली-भाखा मन ल हमी मन हीन समझत हन अऊ बोलचाल म गोठियाय
बर लजात हन। एखर ले अऊ बड़खा गलती का होत हे जानत हव? छत्तीसगढ़ी सबद मन के
हिन्दीकरण के चोचला म अरथ के अनअरथ करके। कैसे? बतावत हो..

आभी सोशल मीडिया के चलन
जोरदार चलत हावे, कुछुज
तीज-तिहार, मंगल कारज, घटना घटत हे,
तेला सोशल मीडिया म भेजे के हड़बड़ी सब्बो ल हावे। अब ई हड़बड़ी म का गड़बड़ी होवत हे कि
तीज-तिहार तो हमर छत्तीसगढ़ राज के हावे, जेकर छत्तीसगढ़ी नाम
हावे अऊ ओकर एकदम रोक्का अरथ घलो हावे। आब होवत ई हे कि हमन ला सोशल मीडिया म
भेजना ही हावे, नई भेजबो त चारा नई पचय, लेकिन असमंजस म घलो
हन कि छत्तीसगढ़ी म भेजबो त मुरुख कहाबो क के, अऊ हमर आधुनिक इस्टाइल वाला मितान मन
का किही तेकर लाज सरम घलो हावे। त ई बखत म का होथे, हमरेच मांझा के कोन्हू एकोझन
ढेढ़ होसियार संगी हर छत्तीसगढ़ी नाम ल हिंदी म बलदे के परयोग करथय अऊ ओकर देखा देखि
म हमन सब्बो झन बिना सोच विचार के भकाभक कॉपी-पेस्ट कर देथन, पोस्ट पोस्टी करकरि
के तिहार मान दारथन। लेकन संगी हो, ई सब के चक्कर म हमन अरथ के अनअरथ कर देत हन।
जेकर अरथ छत्तीसगढ़ी म आने होथे ओला हिन्दीकरण के परियास म आने कर देत हन। एक ठी
आभी आभी के ताजा ताजा फरेश उदहारण देवत हव।
संगी हो हर बरस भादों महिना के
अमाश के दिन हमर छत्तीसगढ़ी राज म पोरा तिहार मनाय के चलन पुरखौती ले चलत आत हवय।
ऐसों घलो सम्मार के दिन अमाश पडिस अऊ पोरा तिहार मनाय गिस हवय। महूँ घलो सोशल
मीडिया के अब्बड़ परेमी अव, सम्मार के बड़े बिहनिया सूत उठ के सबले पहेली मोबाइल
देखेव, कई झन संगी मन इस्टेटस डाले रिहिन “आप मन ल
पोला तिहार के बधाई हो, पोला तिहार के बधाई हो” अऊ कुछ संगी मन के पोस्ट म पोरा
तिहार लिखे रहिस, अइसने बधाई तो आन बछर घलो आवय लेकिन मोर माथा ठनकिस एसो। हमन तो
पुरखा ले पोरा तिहार मनात आत हन त फेर ई पोला के का चक्कर ये? संगी हो ई चक्कर ह अऊ कछु नई होईस, हिंदीकरण के फेर म अरथ के अनअरथ हावे।
छत्तीसगढ़ी म पोरा के अरथ होथे धान म पोर फूटना अऊ पोटरी पड़ना। छत्तीसगढ़ी म पोला के
अरथ होथे छेदा, भुलका, भोंगरा, पोलपोला। हमन छत्तीसगढ़िया अन
संगी हो अऊ हमन पोरा मनाथान पोला नई, काबर कि इ दिन हमर धान ह गरभ धरथे। त सोचेव
कि काबर न एक ठी ब्लॉग पोरा के अरथ म लिखय जाय।

संगवारी हो, जइसन सुरता ले तीज-तिहार मानत देखत आत हन ओ
सब ला सुरता करके लिखत हव। छत्तीसगढ़ राज के भीने भीने धरी म भीने भीने रकम ले आनी
बानी के तीज-तिहार मनाथय। हमर राज के सब्बो तीज-तिहार मन खेती-किसानी अऊ परकिरती
ले जुडे हवय जोन हर पुरखा ले परकिरती ल सज धज के राखे के संदेसा देवत आत हवय। इसने
एक ठी तिहार ये “पोरा”, जोन ल खेती-किसानी के दूसरा चरन म मनाय जाथे। संगी हो हमर
राज के पहिली तिहार आथे “हरेली”, जोन ल खेती-किसानी के पहिली चरन पूरा होय के बखत
मनाथे। ए बखत म पूरा धरती हर हरियर-हरियर रूप धर के सजे समरे रथय, अऊ किसनहा मन
धान-पान बो-बोवई, चाल-चाली अऊ बियास के सके रथय। अहू हरेली ल आजकाल हरियाली तिहार
कहत हें अऊ इस्कूल, सहर नगर म तो गिरिन डे कहत मनात हावे।
हरेली के नाम ले मनाय म का दुःख हे मोला तो समझ म नई आइस।
खेती-किसानी के दूसरा चरन पूरा होथे जब खेतिखार के नींदा निंदाई
के बूता पूरा हो जाथय। ई बेरा ह संगी हो, धान के पेड़वा ले पोर फुटे के, पोटरी आय के, पोठ पान
धरे के बेरा रथे, जेम्मा थोरकन दिन पाछू बाली निकलथे अऊ पोठ्ठा पोठ्ठा दाना भरथय।
एक रिकिम के समझ सकत ह ई बेरा हर धान के गरभ धरय के रथय। धान म पोर फूटे के
हंसी-खुशी म हमर पुरखा मन पोरा तिहार मनाय लगिन। संगी हो, ई
दिन माटी के नंदिया बइला बना के ओकर पूजा करे जाथे। नंदिया बइला ल माटी के दू ठन नानचुन
नानचुन मटकी म ठेठरी-खुरमी, गुजकलिया बना के परसाद चढ़ाये जाथे, जेला पूरा परिवार
मिल-बाँट के खाथय। इही दिन जोन परिवार ह शंकर भगवान ले कुछु सरधा राखे रथे या फेर
कुछु बदना बदे रथें त भोले बाबा के सवारी बर बिधि सनमत पूजा-पाठ करके नंदिया बइला छोड़य जोन ला गोल्लर ढीले कहे जाय।
गोल्लर छोड़ के हमर पुरखा मन गऊ वंश के रक्षा-संरक्षण करे के संदेसा आने वाला पीढ़ी
मन ला देत आय हें। पोरा के दिन के नंदिया बइला हर पोरा बइला कहाईस। संगी हो
छत्तीसगढ़ के भीने भीने धरी म भीने भीने ढंग ले पोरा तिहार मनाय जाथे लेकिन सब्बो
ढंग मन एके संदेसा देथे, खेती-किसानी अऊ परकिरती के संरक्षण करव।
संगी हो अगर हमन छत्तीसगढ़ी परंपरा ल माने नई सकत हन त कम से
कम जाने के परियास तो कर सकत हन का! संगी हो, हमर इतिहास, हमर संस्कृति, हमर सभ्यता, हमर रहन-सहन, हमर बोली-भाखा, हमर रीती-रिवाज, हमर तीज-तिहार मन ल हमन धर-छबक के नई राखबो त काकर बबा
के जात हे, कोन ल पड़े हे! परदेशिया थोड़े करिही जी, हमी मन ल ही करे बर लागही। जादा तो नई लिखव संगी हो, लेकिन जतका लिखे हों वो सब मन मोरेच मन के विचार ये, जोन ला नानकुन ले
देखत सुनत करत आत हन, कोन्हू अन ले कुछु कॉपी-पेस्ट नई करे हव। अतका निवेदन करत
हों कि छत्तीसगढ़ी ल घलो मान-सम्मान दव, छत्तीसगढ़ी सबद मन के अरथ ल अनअरथ झन करव,
काबर “छत्तीसगढ़िया-सबले बढ़िया” हावे त संगी हो “गुर के भेली-छत्तीसगढ़ी बोली” हावे।
संगवारी हो, आप मन घलो पोरा तिहार अऊ छत्तीसगढ़ी सबद मन के बारे म इसने कुछु जानत हव त
आप मन के विचार ल घलो मोर ब्लॉग म टिपण्णी कर देवव, जय-जोहार, राम राम....
आप मन के,
दाता राम नायक
रायगढ़, छत्तीसगढ़