अक्टूबर 10, 2025

चंदा रे तेरे दर्शन को (करवा चौथ)

चंदा रे तेरे दर्शन को,

आतुर उसकी नयना है,

ताक रही है आसमान को,

जल अर्पण जो करना है।

कहती है शशि को निहार लूं,

फिर आपको निहारूंगी,

सातों जन्मों के बंधन में,

इक सुत और पिरोऊंगी।


प्रेम प्रिया की इस डोरी में,

क्या खूब बंधा हुआ हूं,

तेरा रस्ता तकने छत पर मैं,

साँझ से बैठा हुआ हूं।

जब तब मत कर ओ रजनीकर,

अब इतना देर न करना,

चंद्रलोक से मेरे घर तक,

तू जल्दी जल्दी चल ना।


चंदा रे तेरे दर्शन को,

आतुर उसकी नयना है,

ताक रही है आसमान को,

जल अर्पण जो करना है।








कभी बादलों में गुम जाता,

कभी फलक पे रुकता है।

जितनी तृष्णा बढ़ती जाती,

उतना ही तू छुपता है।

रात भी गहरी हो गई है,

निशिथ पहर आन चला है।

तू क्यों छुपा हुआ है अब तक,

चांद! क्या तू मनचला है?


लुका छिपी बहुत हो गया रे,

कितना और सताएगा,

आंख मिचौली करते–करते,

सारी रात पहाएगा!

जल्दी आना, तुझको किसका,

और प्रतीक्षा करना है?

मेरे इस चांद संग तुझको,

मुझे भी अवलोकना है।


चंदा रे तेरे दर्शन को,

आतुर उसकी नयना है,

ताक रही है आसमान को,

जल अर्पण जो करना है।

✍🏻 दाता राम नायक DR