रविवार, 8 मई 2016

जो भारत की जननी है

          Mother's Day पर मेरी कविता

ये साक़ी हैं मधुशाला के, खेलते स्वर्ण दीनारों पर,

जो जननी है भारत की,  पड़ी रहती किनारों पर ।

मेहनत से बूढ़ी काया ने, जो महल कल सजाया था,

घर से वो बेघर होती, और घुँघरू बजती मीनारों पर।

खुशियों के चकाचौंध में, भोग विलास छलकती है,

अँधेरी कोठरी से उसकी, नैन टिकी रहती दीवारों पर।

दुःख भरी रातों में, उन नौ महीनों में खोये रहती है,

यादों का लेप लगाती वह, वर्तमान के इन दरारों पर।

फिर भी प्रेम देखो, मंगल जीवन का आशीर्वाद सुनो,

जो सतत बरसती है, समय के मारे कपूत बेचारों पर।

अरे सुनो, भारत के माताओं का, सहन टूट जायेगा!

तब जगह भी न मिलेगी, श्मसान के मजारों पर।

जो जननी है भारत की, पड़ी रहती किनारों पर,

पड़ी रहती किनारों पर, अब तो बिठा दो मंदिरों पर।

मातृ दिवस पर विश्व के सभी माताओं दाता राम नायक “DR” का शत् शत् नमन……...।

मेरे मृत्युंजय

 कर दिया है मैने अपना सारा जीवन तेरे चरणों में अर्पण मुझे किसका लागे डर? अब किसका लागे भय? मेरे मृत्युंजय मेरे मृत्युंजय.... मेरा रास्ता भी ...