सोमवार, 8 मई 2017

सवाल शख़्सियत की है

Some of my rows for my lovely & self-respecting friends


मतलबे दौलत की नही,
सवाल शख्सियत की है..
सज़दे में सिर झुके,
बात उस हैसियत की है...।

दफ़्न हो गयी रेगिस्तां में,
उसकी दौलतें सारी..
मगर ज़िंदा आज भी,
शख्सियत सिकंदर की है...।

लुटे हुए हिन्द को,
दौलतमंद उसने बना दिया..
मगर चर्चे आज भी,
शोहरतें चंद्रगुप्त की है...।

शहंशाह कितने बने,
कोई जीतकर कोई हारकर..
मगर सज़दा घास की रोटी वाले,
महाराणा प्रताप की है...।

ज़मीर ऊंचा रखिये,
खुद्दारी का पैमाना रखिये..
मरकर जो ज़िंदा रहे, आखिर
सवाल इंसानियत की है...।

         ~: दाता राम नायक "D®"
                RAEO रायगढ़

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 कर दिया है मैने अपना सारा जीवन तेरे चरणों में अर्पण मुझे किसका लागे डर? अब किसका लागे भय? मेरे मृत्युंजय मेरे मृत्युंजय.... मेरा रास्ता भी ...