हमें न तो भुखमरी चाहिए, न कंगाली चाहिए,
सफेद बालों के साथ कभी, न बदहाली चाहिए।
जिनके हुक्मों के पालन में, अपनी जवानी गयी,
उन हाकिमों से ओपीएस, की बहाली चाहिए।
जीवन भर सेवा देने का, थोड़ा मान चाहिए,
न तिरस्कार, न एनपीएस, की मलाली चाहिए।
धक्केशाही निज सेवक पर, है क्या ये रीत सही?
बेबस बुढ़ापा न हो अपना, वो खुशाली चाहिए।
सरकारें जिसकी भी आये, ऐ दोस्त लड़ते चलो,
अपना भविष्य हमको सबको, बस उजाली चाहिए।
साथ हमारे जुड़ते चलिए, बनता रहे कारवां,
हमको कुछ जबाबी चाहिए, कुछ सवाली चाहिए।
जोश न थमने पाये यारों, मंजिल अभी दूर है,
जो उमंग अब हमें चाहिए, वह धमाली चाहिए।
आशा की जलती रहे दिया, गहरे अंधकार में,
अभी बनवास बीत रही है, फिर दिवाली चाहिए।
कह देना सत्ताधीशों को, अब ये जुल्म बंद हो,
हो जहां हमारी हित वैसी, विधि-प्रणाली चाहिए।
रचनाकार :- दाता राम नायक "Mr. DR"
सुर्री, जिला:- रायगढ़ (छग)