नौ दिन के तोर रूप नौ ठन, हावे भारी सुग्घर।
हावे भारी सुग्घर दाई, हावे भारी सुग्घर।
नौ दिन बर पहुना बन तैं हर, आए मोर टुठा घर,
आए मोर टुठा घर दाई, आए मोर टुठा घर।
जिसने बन पाही तिसने वो, करिहूँ सेवा–सुरसा।
सरधा के दू फूल चढ़ाहूँ, नवराता के मउका।
जलाहुँ दियना चारों कोती, जगर–बगर, जगर–बगर,
जगर–बगर, जगर–बगर दाई, जगर–बगर, जगर–बगर।
नौ दिन बर पहुना....
चढ़गे मांदर मं चाप अऊ, झांझ मंजिरा बाजे।
तोर जसगीत के चौका मं, भगत–उपासिन नाचे।
नाचत–गावत रात पहा गे, नई भरिस मन भर–भर,
नई भरिस मन भर–भर दाई, नई भरिस मन भर–भर।
नौ दिन बर पहुना....
लाली लाली लुगरा पहनिन, करधन पैंजन बाँधिन।
लाली चुनरी मं नौ कइना, अंगना मोर उतरिन।
मोर भाग हावे महतारी, सबले अब्बड़ उज्जर,
सबले अब्बड़ उज्जर दाई, सबले अब्बड़ उज्जर।
नौ दिन बर पहुना....
कारी–कारी रथिया मं तैं, चंदा बनके आबे।
जस सुरुज सही बिगबिग–बिगबिग, डाहर रोज दिखाबे।
दया–मया, अशीष के झक्खर, बरसाबे ओ झर–झर,
बरसाबे वो झर–झर दाई, बरसाबे वो झर–झर।
नौ दिन बर पहुना....
रचनाकार:– दाता राम नायक DR
सुर्री, रायगढ़
(सर्वाधिकार सुरक्षित)