गुरुवार, 17 सितंबर 2015

मैं हिन्दी हूँ

देवभाषा संस्कृत से उपजी हूँ मैं,
सहस्त्र वर्षों से गयी सहेजी हूँ मैं ।
भारत को पढ़ना, दहाड़ना सिखाया,
ज्ञान देना,  इतिहास बनाना सिखाया ।
रस, छंद, अलंकार से परिपूर्ण,
संज्ञा, सर्वनाम, समास से संपूर्ण ।
काव्य, महाकाव्य मैने ही दिया,
निबंध, संस्मरण मैने ही लिखाया ।
गीता, रामायण को मुझसे ही पढ़े,
हर धर्म भारत का मुझसे होकर बढ़े ।
सन् 1000 से मैं चली आयी हूँ,
अब सदी 21वीं में लड़खडाई हूँ ।
पंत, निराला, प्रसाद, महादेवी ने,
भारतेंदु, शुक्ल, द्विवेदी, मुंशी ने ।
मेरा सोलह श्रृंगार किया है,
रहीम, रसखान ने अंगीकार किया है ।
आज मैं परिचय बतायी जाती हूँ,
शिक्षितों से परिहास बन जाती हूँ ।
मैं ही हूँ हर जिह्वा की अभिलाषा,
मैं ही हूँ हर भारतीय की परिभाषा ।
मैं मातृभाषा हूँ, सबकी बंदगी हूँ,
मैं परायी नही तुम्हारी हिंदी हूँ ।
मैं हिंदी हूँ, मैं हिंदी हूँ, मैं हिंदी हूँ.....

           "दाता राम नायक "




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