शहीद दिवस पर आप सभी के लिये प्रस्तुत है:-
आओ यारों तुम्हे सूनाऊँ दास्ताँ एक जवान की
शहीद-ए-आजम उस क्राँतिकारी महान की
लयालपुर के बंगा का निवासी वह सिंह किशन था
पत्नि विद्यावती के साथ आनंदित उसका जीवन था
दिया दूसरा पुत्र जन्म से जो तेजस्वी ओजस्वी सिंह गर्जन था
शूभ तिथि 27 सितम्बर और 1907 का वह सन था
बालक वह कूछ कर गुजरने वाला था
आधीन नही किसी का स्वतंत्र विचरने वाला था
पढ़ने में भी नही था वह पीछे
वीर रस का शायरी गज़ल लिखने वाला था
साराभाई लाला लाजपत को जिसने गुरू माना था
सन 19 जालियावाला कांड ने बालक मन बदल डाला था
तब शेर-ए-हिंद चंद्रशेखर के साथ दल बना डाला था
राजगुरू सुकदेव के साथ ब्रिटिश सरकार हिला डाला था
अंग्रेजो की नींद हराम हो गयी चैन चला गया था
इन शेरों ने भारत आजाद उसी वक्त कर डाला था
हिंद को माता और मौत को जिसने सनम माना था
सरदार भगत सिंह है नाम उसका आजादी का दिवाना था
लाहौर षडयंत्र के आरोप में फाँसी इसे सुनाया था
अंतिम सफर में साथ राजगुरू सुकदेव का याराना था
अंग्रेज तो इसके मौत से भी डर गये की हरकत-ए-कायराना
समय पहले संध्या 7 बजे 23 मार्च सन 31 को लटकाया
अंग्रेजो के लिये मर गया हिंद के लिये अमर हो गया
अरे जो शाँत ना हो कभी ऐसा वह समर हो गया
ऐसा दीवाना-ए-खास है जो मौत को भी जीत गया
अंग्रेज हुक्मरानों का निशाँ नही दीवाना-ए-भगत कायनात हो गया
अमर शहीद सरदार भगत सिंह जी को उनके पुण्य तिथि "शहीद दिवस" 23 मार्च पर समर्पित ये शब्द सुमन
-: दाता राम नायक
ग्रा.कृ.वि.अ. कुसमूरा
रायगढ़
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