सोमवार, 17 अगस्त 2020

मातृभूमि की वंदना

अबीर गुलाल बनकर जिसकी,

धूल उड़ा करती है,

जिसकी खेतों के कीचड़ में,

कनक उगा करती है,

जिसकी सौंधी सौंधी मिट्टी,

जन जन का चंदन है,

उस मातृभूमि भारत माँ का,

कोटि कोटि वंदन है।


जिसकी गोद में खेलते हैं,

कई धर्म की नस्लें,

जिसकी छाती में पकते हैं,

कई तरह की फसलें,

जहाँ प्रकृति के हर कोने का,

होता अभिनंदन है,

उस मातृभूमि भारत माँ का,

कोटि कोटि वंदन है।


जिसकी जमीन पर जन्में हैं,

परम वीर लाखों में,

मुठ्ठी में मसला करते हैं,

दुश्मन को हाथों में,

जिसकी सेना धीरज वाली,

पर शत्रु निकंदन है,

उस मातृभूमि भारत माँ का,

कोटि कोटि वंदन है।


कण कण जिसकी ज्ञान ध्यान से,

तीर्थों सा पावन है,

तपोबल जहाँ तपस्वियों की,

सदा ही सुहावन है,

मुनि-ऋषियों के उपदेशों का,

जहाँ सौम्य स्पंदन है,

उस मातृभूमि भारत माँ का,

कोटि कोटि वंदन है।


जिसकी सौंधी सौंधी मिट्टी,

जन जन का चंदन है,

उस मातृभूमि भारत माँ का,

कोटि कोटि वंदन है।

उस मातृभूमि को दाता का,

कोटि कोटि वंदन है....

कोटि कोटि वंदन है....


{अबीर- सुगन्धित चूर्ण (aromatic pawder), कनक- सोना, निकंदन- संहार करना, सुहावन- संवेग (vibration)}



          -:दाता राम नायक "DR"

           ग्रा.कृ.वि.अधि.- कुसमुरा

                  रायगढ़ (छ.ग.)



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