सादगी के इस श्रृंगार में, खो जाने को दिल करता है।
चंद्रमा की इस चांदनी को, पा जाने को दिल करता है।
तुम्हे देखकर ही मिलती है, बेशुमार सुकून इस दिल को,
तुम्हारे गोद में सर रखकर, सो जाने को दिल करता है।
सादगी के इस श्रृंगार में....
चंद्रमा की इस चांदनी में....
तेरी इन काली आंखों में, इक गहरा सागर बहता है,
अपने अल्हड़ सी लहरों से, मुझे रोज खींचा करता है।
कितना भी रोकूं, मैं खुद को, कितना ही टोकूं मैं खुद को,
लहरों के अटखेलियों संग, डुब जाने को दिल करता है।
सादगी के इस श्रृंगार में....
चंद्रमा की इस चांदनी में....
देखकर किसी को तुम ऐसे, मीठा मुस्कुराया न करना,
अपने होठों के हलचल से, गैरों को यूं फना न करना।
एक मुस्कान ही काफी है, लूटने के लिये दुनिया को,
किसी और से पहले खुद ही, लुट जाने को दिल करता है।
सादगी के इस श्रृंगार में....
चंद्रमा की इस चांदनी में....
तुम्हारे रेशमी जुल्फों का, हवा संग बाते कर जाना,
रुखसारों को छू कर इनका, कमर से नीचे उतर आना।
जुड़े में बांध कर रखो इन्हें, कोई आशिक फंस न जाये,
लंबे केशो के पाशो में, खो जाने को दिल करता है।
सादगी के इस श्रृंगार में....
चंद्रमा की इस चांदनी में....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें