कुछ मिला ना मिला गिले शिकवे मिले।
वो दौर दीवानगी था अब दौरे समझदारी है,
कल तक जितने मिले वो आज कहाँ मिले ?
प्रिय पाठकों, इस ब्लॉग में आपका आत्मीय अभिनंदन है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाएं मेरी स्वरचित साहित्य साधना हैं। मेरी रचनाओं के प्रति आपका प्रेम मुझे सदैव प्रेरित करता है।
शुभ सावन की झड़ी को
खेतों में मौन मरती फसल,
ये वृक्ष जो खड़े अटल,
विचरते हर जीव जल-थल को,
हो विवश प्राणी पल-पल को,
अपलक अकाश को निहार रहे हैं,
शुभ सावन की झड़ी को विचार रहे हैं ।
तपन से हो धरती व्याकुल,
वर्षा-बूंद समेटने को आतुर,
कोख से धान्य उपजाने को,
भूजल भूगर्भ भूस्वामी बचाने को,
भू-भूमिपुत्र ईश को जयकार रहे हैं,
शुभ सावन की झड़ी को विचार रहे हैं ।
हर घड़ी घन घुमड़-घुमड़ कर,
पर्वत माला से टकरा-टकरा कर,
मग्न हो इधर-उधर नाचने को,
कब होगा ईश-आदेश वर्षा आने को ?
जन-जन बरखा को गुहार रहे हैं ।
शुभ सावन की झड़ी को विचार रहे हैं ।
कहीं और मेघ ना भाग जाना,
निष्ठुरता इतनी तुम ना दिखाना,
आनंदित हैं जीव भीगने को,
पौधे बचे हैं अभी सींचने को,
किसान-पौधे झूमकर तुझे पुकार रहे हैं ।
शुभ सावन की झड़ी को विचार रहे हैं ।
-: दाता राम नायक
ग्राम- सुर्री, पोस्ट- तेतला, रायगढ़
(ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी क्षेत्र - कुसमूरा)
कर दिया है मैने अपना सारा जीवन तेरे चरणों में अर्पण मुझे किसका लागे डर? अब किसका लागे भय? मेरे मृत्युंजय मेरे मृत्युंजय.... मेरा रास्ता भी ...