है एक राज की बात यही, सबको घर में रहना है,
इधर उधर कहीं नही जाना, वादा खुद से करना है।
सड़कों पर आने जाने का, प्यारे ये वक्त नही है,
जो हैं जहाँ वही रुक जाएँ, उपाय बस यही सही है।
मुश्किल के दिन आये हैं तो, रात दुखों की है भारी,
मानो धरती को ग्रहण लगी, जब आ पड़ी महामारी।
कुछ हल्की सी आहट देकर, फैली पलक झपकते ही,
पूरी दुनियाँ को बाँध लिया, पल भर महज़ देखते ही।
मानव मानव से दूर हुए, शहर नगर टूट गये हैं,
राहें चौराहें बंद हुए, गाँव गली रूठ गये हैं।
मार्ग सभी दसों दिशाएँ की, खाली सुनसान पड़े हैं,
साथ समय के चलने वाले, रेल-यान थमे खड़े हैं।
अमीर गरीब ऊँचा नीचा, भेद नही देख रहा है,
छोटे-बड़े स्त्री-पुरुष सबमें, विषाणु ये फैल रहा है।
दिन दूनी औ रात चौगुनी, मिटा रही मानवता को,
शासन चिंतित लोग भयभीत, झेल रहे दानवता को।
स्वास्थ्य जगत हलाकान होता, फिर भी इक राह दिखाता
संक्रमित हवाओं के आगे, आस भरी दीप जलाता।
मानव मानव से दूर रहें, ये कड़ी टूट सकती है,
भीड़ भाड़ जमती रहे अगर, तो दुनियाँ लूट सकती है।
एक एक भीष्म प्रतिज्ञा अब, हम सबको भी करनी है,
बतायी गयी सावधानियाँ, हर दिन हर पल रखनी है।
भारत में यदि कोरोना के, कहर शीघ्र कम करना है,
तो रूखी सूखी खाकर भी, कमरे अंदर रहना है।
है एक राज की बात यही, सबको घर में रहना है,
इधर उधर कहीं नही जाना, वादा खुद से करना है।
रचनाकार:- दाता राम नायक "DR"
इधर उधर कहीं नही जाना, वादा खुद से करना है।
सड़कों पर आने जाने का, प्यारे ये वक्त नही है,
जो हैं जहाँ वही रुक जाएँ, उपाय बस यही सही है।
मुश्किल के दिन आये हैं तो, रात दुखों की है भारी,
मानो धरती को ग्रहण लगी, जब आ पड़ी महामारी।
कुछ हल्की सी आहट देकर, फैली पलक झपकते ही,
पूरी दुनियाँ को बाँध लिया, पल भर महज़ देखते ही।
मानव मानव से दूर हुए, शहर नगर टूट गये हैं,
राहें चौराहें बंद हुए, गाँव गली रूठ गये हैं।
मार्ग सभी दसों दिशाएँ की, खाली सुनसान पड़े हैं,
साथ समय के चलने वाले, रेल-यान थमे खड़े हैं।
अमीर गरीब ऊँचा नीचा, भेद नही देख रहा है,
छोटे-बड़े स्त्री-पुरुष सबमें, विषाणु ये फैल रहा है।
दिन दूनी औ रात चौगुनी, मिटा रही मानवता को,
शासन चिंतित लोग भयभीत, झेल रहे दानवता को।
स्वास्थ्य जगत हलाकान होता, फिर भी इक राह दिखाता
संक्रमित हवाओं के आगे, आस भरी दीप जलाता।
मानव मानव से दूर रहें, ये कड़ी टूट सकती है,
भीड़ भाड़ जमती रहे अगर, तो दुनियाँ लूट सकती है।
एक एक भीष्म प्रतिज्ञा अब, हम सबको भी करनी है,
बतायी गयी सावधानियाँ, हर दिन हर पल रखनी है।
भारत में यदि कोरोना के, कहर शीघ्र कम करना है,
तो रूखी सूखी खाकर भी, कमरे अंदर रहना है।
है एक राज की बात यही, सबको घर में रहना है,
इधर उधर कहीं नही जाना, वादा खुद से करना है।
रचनाकार:- दाता राम नायक "DR"
Bhut Sundar rachnaye . congratulations
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद आपका
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