सोमवार, 6 नवंबर 2017

हर घर महकी हर एक घर महक गया,
आये जो आप सारा शहर महक गया।

रंगीन कांटे हो गये खुशबू छलक गया,
चंद हँसी से आपकी बबुल महक गया।

यूँ तो कई बहारें गुजरतीं हैं मेरे घर से,
इक आहट से आपकी सजर महक गया।

हर शाम फूलों से सजती महफ़िलें मेरी,
मगर गजरे से आपकी गुलशन महक गया।

सासों ने महसूस किया दिल बहक गया,
दुप्पटे की लहर से राहे इश्क महक गया।

ये बेलायें लताएँ रजनीगंधा किस दर्जे की,
इक आपकी छुअन से ये दाता महक गया।

       -: दाता राम नायक DR

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