शनिवार, 4 अप्रैल 2020

आओ दिया जलाते हैं...

विपदा की इस बेला में, एक उम्मीद जगाते हैं,
इन अँधियारी रातों में, आओ दिया जलाते हैं।


जाने किसकी नजर लगी, देखो प्यारी वसुधा को,
छीन गयी खुशियाँ सारी, छीन रही है आभा को।
अभी अभी तो बसंत भी, आया था फूल खिलाने,
कहाँ कहाँ से आ टपकी, पतझरी बैरन न जाने।
लगेगा समय अवश्य ही, दुखों के बीत जाने में,
नव उजास भी आयेगा, चलो हिम्मत बढ़ाते हैं,
इन अँधियारी रातों में, आओ दिया जलाते हैं।

विपदा की इस बेला में, एक उम्मीद जगाते हैं,
इन अँधियारी रातों में, आओ दिया जलाते हैं।


निर्दोषों के क्रंदन से, क्या ये प्रकृति अधीर नही?
तड़पते बच्चों को देख, हो रही उसे पीर नहीं?
नही, अति तो हमने किया, उसने कुछ लौटाया है,
उससे छेड़खानी का एक, परिणाम ही बताया है।
वर्चस्व की लड़ाई में, सदा सभी ने हारा है,
मानव-मानव  प्रेम करें, चलो नव गीत गाते हैं।
इन अँधियारी रातों में, आओ दिया जलाते हैं।


विपदा की इस बेला में, एक उम्मीद जगाते हैं,
इन अँधियारी रातों में, आओ दिया जलाते हैं।

रचनाकार:- दाता राम नायक "DR"
         🚪-  7898586099

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