सोमवार, 10 अगस्त 2020

केंचुआ खाद (Vermi Compost) बनाने की विधि एवं विस्तृत जानकारी

            वर्मी कम्पोस्ट (केंचुआ खाद)

मित्रों आज हम वर्मी कम्पोस्ट के विषय में विस्तृत चर्चा करेंगे। खेती किसानी की बात होती है तो हमारे मन में खाद का ख्याल आ ही जाता है। और जब जैविक खेती की बात निकलती है तो बिना खाद के जैविक खेती की कल्पना भी संभव नहीं होती। खाद उपयोगिता एवं बनाने के आधार पर कई प्रकार के होते हैं जिनके निर्माण विधि भी एक-दूसरे से भिन्न-भिन्न होती है। इन्हीं खादों में से उन्नत विधि से विकसित की गई एक खाद है “वर्मी कम्पोस्ट (केंचुआ खाद)”। यह अन्य खादों की तुलना में बहुत अधिक उपयोगी एवं प्राकृतिक रूप से कृषि उपयोगी तत्वों से भरपूर होती है। आइये विस्तार से जानते हैं वर्मी कम्पोस्ट के बारे में और इसे किस प्रकार से स्वयं बना सकें ये सीखने का प्रयास करते हैं। सबसे पहले खाद को समझते हैं:-

चित्र:- केंचुआ खाद (Vermi Compost)


खाद:-

      वनस्पती जगत में पोषण और विकास के काम आने वाले वनस्पतियों के विघटन (सड़न) से प्राप्त पदार्थ को खाद कहते हैं। खाद रूप में प्रयुक्त जैव पदार्थों को जैविक खाद (Manure) कहते हैं।खाद तीन प्रकार के होते हैं:-

•गोबर खाद (Animal manure)- गोबर को साधारण रूप से गड्ढे में एकत्र करते रहने से अपघटित होकर जो खाद बनती है उसे गोबर खाद कहते हैं।
•हरी खाद (Green manure)- खेत में हरे पौधे उगाकर खेत में पानी भरकर उन्हें हल और पाटा चलाते हुए भूमि में मिलाकर सड़ाने से जो खाद बनती है उसे हरी खाद कहते हैं।
•कम्पोस्ट खाद (Compost)- कम्पोस्ट (Compost) एक प्रकार की खाद है जो जैविक पदार्थों के अपघटन एवं पुनःचक्रण (recycle) से प्राप्त की जाती है। यह जैविक खेती  का मुख्य घटक है। कम्पोस्ट बनाने का सबसे सरल तरीका है - कच्चे जैव पदार्थों (जैसे पत्तियाँ, बचा-खुचा खाना आदि) का ढेर बनाकर कुछ काल तक प्रतीक्षा करना ताकि इसका विघटन हो जाय। विघटन में कुछ सप्ताह या महीने लगते हैं। उसके बाद वह ह्यूमस में बदल जाता है। नाडेप,  भू-नाडेप,  वर्मी कम्पोस्ट इत्यादि उन्नत विधि से तैयार होने वाले कम्पोस्ट खाद हैं। कम्पोस्ट में सबसे बहुपयोगी कम्पोस्ट “वर्मी कम्पोस्ट” है। आइये विस्तार से जानते हैं वर्मी कम्पोस्ट के बारे में:-

वर्मी कम्पोस्ट:-

                 वर्मी कम्पोस्ट (केचुआ खाद) का शाब्दिक अर्थ है केचुओं से बना हुआ खाद। केंचुओं के द्वारा जैविक पदार्थों को खाने के बाद उनके पाचन-तंत्र से गुजरने के पश्चात जो अपशिष्ट पदार्थ मल के रूप में बाहर निकलता है उसे वर्मी कम्पोस्ट या केंचुआ खाद कहते हैं। इस खाद में मुख्य पोषक तत्व के अतिरिक्त दूसरे सूक्ष्म पोषक तत्व तथा कुछ हार्मोन्स एवं एन्जाइम्स भी पाए जाते हैं जो पौधों की वृद्धि के लिए लाभदायक होते हैं। इसे बनाने के लिए केचुओं की आवश्यकता होती है और जब केचुओं की आवश्यकता है तो कृषि मित्र केचुओं के बारे में जानना भी आवश्यक है:-

चित्र:-1.टांकें में केचुओं की गतिविधि 2. तैयार वर्मी कम्पोस्ट


केचुवें और उनकी प्रकृति:-

                                 मित्रों केचुवें भूमि की आँत कहलाते हैं। इन्हें भूमि की आँत कहने का अभिप्राय है कि ये भूमि के अंदर लगातार ऊपर-नीचे होते रहते हैं जिससे मिट्टी की भौतिक दशा सुचारू रूप से बनी रहती है। ये कार्बनिक पदार्थ, ह्यूमस और मिट्टी को एक समान मिलाकर मृदा के अन्य परतों तक पहुँचाते हैं। जिससे मिट्टी भुरभुरी, पोली बनी रहती है और भूमि के अंदर हवा का आवागमन बना रहता है। इनके शरीर का अधिकांश भाग प्रोटीन से बना होता है इसलिये मरने के बाद इनका मृत शरीर भी भूमि के लिए उपयोगी है। केचुवें भूमि के दीमक एवं अन्य हानिकारक कीटों को नष्ट करते हैं। इसीलिए इन्हें भूमि की आँत एवं कृषकों का मित्र कहा जाता है।

केचुवें सेप्रोफेगस वर्ग में आते है। भोजन  की प्रकृति के आधार पर दो प्रकार के केचुँए होते हैं :-

1.फायटोफैगस (कार्बनिक पदार्थ खाने वाले) :- फायटोफैगस भूमि के ऊपरी सतह पर पाये जाते है। ये लाल चाकलेटी रंग, चपटी पूँछ के होते है इनका मुख्य उपयोग खाद बनाने में होता है। ये ह्यूमस फारमर केचुवें कहे जाते है। 

2.जीओफेगस (मिट्टी खाने वाले)जीओफेगस केचुवें जमीन के अन्दर पाये जाते है। ये रंगहीन सुस्त रहते हैं। ये ह्यूमस एवं मिट्टी का मिश्रण बनाकर जमीन पोली करते हैं।

भूमि के सतह में रहने के आधार पर केचुवें तीन प्रकार के होते हैं:-

1.एपीजीइक- वे केंचुए हैं जो भूमि के सतह पर रहते हैं। खाद बनाने के लिए इस टाइप केचुओं का उपयोग किया जाता है।
2.एनीसिक- ये भूमि के मध्य सतह में रहते हैं।
3.एण्डोजीइक- ये जमीन की गहरी सतह में रहते हैं।

              केचुओं के विश्व भर में 4500 से अधिक प्रजातियाँ पायी जाती हैं। भारत मे इसकी 500 प्रजातियाँ पायी जाती हैं। हालांकि सभी केचुवें खाद बनाने के दृष्टि से उपयोगी नहीं हैं। खाद बनाने हेतु मुख्यतः दो प्रजाति का उपयोग किया जाता है- 1. ऐसिनिया फोटिडा, 2. युड्रिलस यूजीनी, ये रेड वर्म भी कहलाते हैं। इनका जीवन चक्र 75 से 150 दिन का होता है। ये नमी, प्रकाश, ताप, अम्ल के प्रति संवेदनशील होते हैं। अतः खाद बनाते समय इसका ध्यान रखना आवश्यक है। एक केचुआ 24 घंटे में अपने वजन के 5 गुना तक भोजन कर लेता है और 1 किलोग्राम केचुवें एक दिन में 5 किलोग्राम तक भोजन पचा लेते हैं। 1 वयस्क केचुआ एक दिन में 1 से 3 कोकून बनाता है तथा प्रत्येक कोकून से 25 दिन बाद 1 से 3 केचुवे जन्म लेते हैं जिसे हैचिंग कहा जाता है। इस प्रकार 1 किलोग्राम केचुवे एक साल में 10-13  किलोग्राम तक हो जाते हैं। केेचुवे प्रति वर्ष 200 से 250 टन मिट्टी उलट-पुलट कर देते हैं जिससे खेतों में मिट्टी की सतह 1 से 5 मिमी तक बढ़ जाती है। परंतु वर्तमान में रसायनों के अधिक प्रयोग से केचुवें विलुप्त होते जा रहे हैं।


चित्र:- 1. ऐसिनिया फोटिडा           2. युड्रिलस यूजीनी

केंचुआ खाद बनाने की विधि:-

                     केंचुआ खाद बनने के कई विधि हैं, इसमें सबसे प्रचलित और उपयुक्त विधि है टांका बनाकर खाद बनाने की प्रक्रिया पूरी करना। टांका विधि से केंचुआ खाद तीन चरणों को पूरी करके बनाया जाता है- 1. टांका तैयार करना, 2. कच्चे पदार्थों का चयन, एवं 3. टांका भराई।

1.टांका तैयार करना:- स्थायी रूप से केंचुआ खाद बनाने के लिए ईंट एवं सीमेंट से पक्के टांकें बनाये जाते हैं। टांकें का आकर आयताकार होता है, जिसकी मानक (standard) लम्बाई 3 मीटर, चौड़ाई 1 मीटर एवं ऊंचाई (गहराई) 0.75 मीटर होती है। लंबाई सुविधानुसार बढ़ायी जा सकती है लेकिन चौड़ाई और ऊंचाई निर्धारित आकार में ही बनानी चाहिए। एक यूनिट तैयार करने के लिए 100 वर्ग मीटर स्थान पर्याप्त होता है। 100 वर्ग मीटर में इस आकार के 30 टांकें बनायें जा सकते हैं। 100 वर्ग मीटर से 2 महीने में 12 से 15 टन तक केंचुआ खाद बनायें जा सकते हैं। एक टांकें से एक बार में 4 से 5 क्विंटल खाद प्राप्त की जा सकती है। टांके के एक किनारे में अतिरिक्त जल निकासी के लिए छोटी 1 इंच की नली पाइप लगाकर निकाल देना चाहिए। यदि अतिरिक्त पानी निकलती है तो इसे वर्मी वाश के रूप में उपयोग करनी चाहिए क्योंकि इस पानी मे केंचुओं के शरीर से निकले हुए कई प्रकार के एन्जाइम्स मिले होते हैं। टांको के ऊपर छाया करने के लिए शेड बना देना चाहिए। छाया होने से केंचुओं को धूप, वर्षा से बचाकर तापमान नियंत्रित किया जाता है। 

चित्र:- गोठान सरवानी में निर्मित वर्मी टांका


2.कच्चे पदार्थों का चयन:-
केंचुआ खाद बनाने के लिए ऐसे गोबर का उपयोग करना चाहिए जो अधपका हो। अर्थात गोबर को कम से कम 15 से 20 दिन तक ढेरी लगाकर सुरक्षित रख देना चाहिए जिससे गोबर में सड़ने की प्रक्रिया चालू हो जावे और गोबर सूखकर काला हो जावे। अधपके गोबर में केचुओं के कार्य करने की गति तीव्र हो जाती है जिससे खाद जल्दी बनता है। ताजे गोबर की गर्मी और नमी से केचुवे मर भी जाते है। इसलिए अधपका गोबर ही हमेशा उपयोग में लाना चाहिए। गोबर के अलावा सड़ी-गली पत्तियां, फसल अवशेष, किचन के हरे कचरे, मंडी-बाजारों के सड़े हुए फल-सब्जियां, बायो गैस स्लरी, घास-फूस आदि उपयोग में लाये जाते हैं। सभी कच्चे पदार्थों में कांच के टुकड़े, प्लाटिक, पत्थर, धातु के टुकड़े इत्यादि कठोर वस्तुएँ नही होने चाहिए।

चित्र:-  टांका भराई


3.टांका भराई (बेड बनाना):-
यदि हरे वानस्पतिक पदार्थ सड़े हुए नही हैं तो उन्हें छोटे टुकड़ों में काटकर उनकी ढ़ेरी लगा देते हैं। इसमें गोबर के घोल को मिलाकर 15 दिनों त सड़ाते हैं। प्रतिदिन ऊपर से पानी छिड़क कर नमी बनाये रखते हैं। यदि वानस्पतिक पदार्थ अधसड़े हैं तो सीधे प्रयोग में ला सकते हैं। सर्वप्रथम टांके की निचली सतह में कम सड़ने वाले पदार्थ जैसे पैरा, केले के पत्ते, भूसे आदि की 6 इंच मोटी परत बिछाते हैं। इसके ऊपर 6 इंच मोटी परत अधसड़े वानस्पतिक कचरों को बिछा देते हैं। अब इसके ऊपर अधपका गोबर को बिछाया जाता है। इस गोबर की परत में प्रति वर्ग मीटर 500 से 1000 (लगभग 1 किलोग्राम) केचुओं को मिला देते हैं। केचुओं को हाथों से मिलाना चाहिए। हाथों में दस्ताने (ग्लब्स) लगा लेते हैं। इस तरह एक टांके में 3 किलोग्राम केचुओं की आवश्यकता होती है। गोबर, केचुओं के भोजन होते हैं इसलिए इन्हें गोबर के परत के ऊपर ही मिलाना चाहिए। केचुवें मिलाने के बाद पुनः 1 फिट तक सड़े वानस्पतिक पदार्थ (हरे पत्ते आदि) एवं अधपके गोबर की परत बिछा कर 2 से ढाई फिट तक टांका भरा जाता है। एक टांकें में 30% हरे कचरे होने चाहिए। इस तरह से टांके भरे जाने चाहिए। बेड में जुट के बोरे बिछाकर ढ़क दिया जाता है। टांके के छत में भी जुट के बोर लगाकर टांको को अंधेरा किया जाता है जिससे केचुवें अंधेरे में अधिक क्रियाशील रहें और तापमान नियंत्रण में रहे। बेड में नमी बनाये रखने के लिए समय समय पर पानी का छिड़काव स्प्रेयर की सहायता से करते रहते हैं। अनुकूल परिस्थिति मिलने पर केचुवें अपने आप पूरे बेड में फैलने लगते हैं। लगभग 25 से 30 दिनों बाद ऊपरी सतह में 3 से 4 इंच मोटी परत चाय के पत्ती के समान दानेदार काले रंग की, मिट्टी की गंध वाला पदार्थ प्राप्त होता है, यही केचुओं से बना हुआ केचुआ खाद है। इस खाद को एक किनारे से हिलाते हुए एकत्र कर लेते हैं। ऐसा करने से केचुवें गहराई में चले जाते हैं। इस तरह 5 से 7 दिन के अंतराल में 3 से 4 इंच मोटी परत में केंचुआ खाद निकलते रहता है जिसे एकत्र करते रहते हैं एवं पानी का छिड़काव करते हुए नमी बनाये रखे रहते हैं। लगभग 60 दिनों में 90% तक केंचुआ खाद मिल जाता है। शेष बचे खाद में केचुवें (वयस्क एवं छोटे-छोटे) और उनके अंडे (कोकून) मिले रहते हैं जिन्हें अगले चक्र में उपयोग किया जाता है। केंचुओं की प्रजनन क्षमता को बढ़ाने के लिए गेहूं की भूसी, चना, सरसों या नीम की खली को समान मात्रा में मिलाकर 500 ग्राम मिश्रण को 10 लीटर पानी मे मिला कर प्रति बेड छिड़कना चाहिए। केचुवें डालते समय 500 मिली मठ्ठे को प्रति बेड छिड़कने से कम्पोस्टिंग की गति तेज हो जाती है। केचुवें खाद बनने के अंत तक इतने बढ़ जाते हैं कि एक टांके के केचुवें से नए एक से दो टांके के लिए केचुवें मिल जाते हैं। एक वर्ष में एक टांके से 2 टन केंचुआ खाद मिल जाता है एवं 100 वर्ग मीटर में 60 टन केचुआ खाद प्राप्त होता है। प्रति वर्ष चार चक्रों में केंचुआ खाद तैयार होता है। कुल उपयोग किये गए कचरों से 60% खाद तैयार होता है। तैयार खाद को छायादार स्थान में प्लास्टिक बैग या HDPE थैली में भरकर रखना चाहिए।

चित्र:- वर्मी टांका एवं टांका भराई की संरचना


केंचुआ खाद बनाते समय ध्यान रखने योग्य बातें:-

1.वर्मी बेड में नमी का स्तर 25-30% बनाये रखना चाहिए तथा 35% से अधिक न हो। अधिक गीला रहने से केचुवें मर जाते हैं।
2.गोबर की मात्रा लगभग 40% एवं हरे एवं जीवित पदार्थों की मात्रा 30-30% होना चाहिए।
3.केचुओं के लिए चींटी, कीड़े-मकोड़े, पक्षियाँ शत्रु होते हैं। इनके बचाव के लिए टांके के चारों ओर ग्रीस या तेल की परत लगा देना चाहिए या पक्के नालियाँ बनाकर कर पानी भरे रहना चाहिए।
4.टांके को सीधे धूप और वर्षा से बचाना चाहिए। शेड अनिवार्य रूप से बनाने चाहिए।
5.ताजे गोबर का उपयोग नही करना चाहिए।
6.तापमान अधिकतम 27 से 30 सेंटीग्रेड होनी चाहिए।
7.खाद एकत्र करते समय फावड़ा/खुरपी आदि औजारों का प्रयोग नही करना चाहिए।
8.उपयोग होने वाले कच्चे पदार्थों गोबर में कांच, पत्थर, प्लास्टिक, धातु के टुकड़े आदि कठोर वस्तुएँ नहीं होना चाहिए।
9.गोबर के कड़े होने पर उन्हें हाथों से तोड़ते रहना चाहिए।
10.इसमें किसी भी प्रकार के रासायनिक पदार्थों का उपयोग नही करना चाहिए।

केंचुआ खाद उपयोग करने की विधि :-

                                                        केंचुआ खाद प्रति एकड़ 20 क्विंटल की दर से उपयोग करना चाहिए। यदि 20 क्विंटल प्रति एकड़ की दर से केंचुआ खाद उपयोग की जाती है तो भूमि को 2 बोरी यूरिया (N-50 kg), 4 बोरी (P-30 kg) एवं 1 बोरी पोटाश (K-30 kg) लगभग प्राप्त होती है। अर्थात इस दर में केचुआ खाद उपयोग करने से जैविक खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है। फसलों में बुआई के समय एक समान रूप से केंचुआ खाद का छिड़काव करना चाहिए। खेती के प्रारंभ में इसका उपयोग किया जाना चाहिए। यदि केंचुआ खाद 40 kg के साथ पीएसबी या एजेटोबेक्टर 1 kg का प्रयोग करने से इसके कार्य करने की क्षमता बढ़ जाती है। केंचुआ खाद को खेत मे डालने के बाद किसी भी प्रकार के रासायनिक पदार्थ नहीं डालना चाहिए। हालांकि रॉक फास्फेट को इसके साथ प्रयोग करने से इसकी क्षमता कुछ बढ़ जाती है। तथापि कोई भी अन्य रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से बचना चाहिए।

सारणी:- विभिन्न फसलों में केंचुआ खाद की मात्रा


अच्छे वर्मी कम्पोस्ट के लक्षण:-

1-यह चाय पत्ती के समान दानेदार होता है।
2-इसका रंग काला होता है।
3-इससे बदबू नहीं आती है।
4-इससे मक्खी मच्छर नहीं पनपते।
5-यह भुरभुरा होता है।

केंचुआ खाद में पाये जाने वाले तत्व:-

                                         केंचुआ खाद में नाइट्रोजन की मात्रा 2.5 से 3 प्रतिशत, फास्फोरस की मात्रा 1.5 से 2 प्रतिशत, पोटाश की मात्रा 1.5 से 2 प्रतिशत पायी जाती है। इसके पीएच मान 7 से 7.5 होती है। इनके अलावा वर्मी कंपोस्ट में जिंक, कॉपर, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर, कोबाल्ट बोरोन की संतुलित मात्रा पाई जाती है। साथ ही साथ इसमें प्रचुर मात्रा में विभिन्न प्रकार के एन्जाइम्स और ह्युमिक एसिड भी पाये जाते हैं।

सारणी:- गोबर खाद और केंचुआ खाद में तत्वों की तुलना


वर्मीकम्पोस्ट से लाभ:-

1) पर्यावरण को सुरक्षित रखने में सहायक होती है।
2) मृदा की उर्वराशक्ति को बढ़ाती है।
3) वर्मी कम्पोस्ट खाद प्राकृतिक और सस्ती होती है।
4) भूमि में उपयोगी जीवाणुओं की संख्या में वृध्दि होती है।
6) भूमि में वाष्पीकरण कम होता है अत: सिंचाई जल की बचत होती है।
7) लगातार वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग करने से ऊसर भूमि को सुधारा जा सकता है।
8) फलो, सब्जियों एवं अनाजों की उत्पादन बढ़ जाता है और स्वाद, रंग व आकार अच्छा हो जाता है।
9) पौधों में रोगरोधी क्षमता भी बढ़ जाती है।
10) इसके प्रयोग से खेतों में खरपतवार भी कम होती है।
11) बीज के जमाव प्रतिशत को बढ़ाता है।
12) पौधों को पोषक तत्वों की उपयुक्त मात्रा उपलब्ध कराता है।
13) पौधों की जडो का आकार व वृध्दि बढाने में सहायक होता है।
14) ग्रीन हाउस गैस के उत्पादन को रोकता है। 
15) रोजगार के अवसर बढ़ाने में सहायक है।
5) रासायनिक खाद का उपयोग कम होने से खेती की लागत कम होती है।

चित्र:- प्लास्टिक टांकें से खाद निकालते हुए

कुछ और अन्य विधियाँ हैं जिनका उपयोग केंचुआ खाद बनाने के लिए किया जाता है। जैसे:-

पेड़ विधि:-

              पेड़ के चारों ओर गोबर गोलाई में डाला जाता है। हर रोज गोबर को डालकर धीरे-धीरे इस गोल चक्र को पूरा किया जाता है। पहली बार प्रक्रिया शुरू करते समय गोबर के ढेर में थोड़े से केंचुए डाल कर गोबर को जूट के बोरे से ढक दिया जाता है। नमी के लिए बोर के ऊपर समय-समय पर पानी का छिड़काव किया जाता है। केंचुए डाले गए गोबर को खाते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ते जाते हैं और अपने पीछे वर्मी कम्पोस्ट बना कर छोड़ते जाते हैं। इस तैयार वर्मी कम्पोस्ट को इकठ्ठा करके बोरों में भरकर रख लिया जाता है।

चित्र:- पेड़ विधि से केंचुआ खाद बनाना


टटिया या प्लास्टिक वर्मी बेड विधि:-

                                           प्लास्टिक की बोरी या तिरपाल से बांस के माध्यम से टटिया बनाकर वर्मी कम्पोस्ट का निर्माण किया जाता है। इस विधि में प्लास्टिक की बोरियों को खोलकर कई को मिलाकर सिलाई की जाती है। फिर बांस या लट्ठे के सहारे चारो ओर से सहारा देकर गोलाई में रख कर उसमें गोबर डाल दिया जाता है। गोबर में केंचुए डालकर टटिया विधि से वर्मी कम्पोस्ट का निर्माण किया जाता है। जिसमें लागत न के बराबर आती है। रेडीमेड प्लास्टिक वर्मी बेड का भी उपयोग किया जाता है जिसमें लागत के रूप में वर्मी वेद की कीमत होती है। यह बेड शासकीय अनुदान में भी किसानों को दी जाती है। 


चित्र:- गोठान हिर्री, बरमकेला रायगढ़ में केंचुआ खाद निर्माण


चित्र:- प्लास्टिक बोरी (टटिया विधि) से केंचुआ खाद बनाना


क्यारी या बेड विधि:-

             छायादार जगह पर जमीन के ऊपर 2-3 फुट की चौड़ाई और अपनी आवश्यकता के अनुरूप लम्बाई के क्यारी (बेड) बनाये जाते हैं। इन बेड़ों का निर्माण गाय-भैंस के गोबर, जानवरों के नीचे बिछाए गए घासफूस-खरपतवार के अवशेष आदि से किया जाता है। ढेर की ऊंचाई लगभग लगभग 01 फुट तक रखी जाती है। बेड के ऊपर पुवाल और घास डालकर ढक दिया जाता है। एक बेड का निर्माण हो जाने पर उसके बगल में दूसरे उसके बाद तीसरे बेड बनाते हुए जरूरत के अनुसार कई बेड बनाये जा सकते हैं। शुरुआत में पहले बेड में केंचुए डालने होते हैं जोकि उस बेड में उपस्थित गोबर और जैव-भार को खाद में परिवर्तित कर देते हैं। एक बेड का खाद बन जाने के बाद केंचुए स्वतः ही दूसरे बेड में पहुंच जाते हैं। इसके बाद पहले बेड से वर्मी कम्पोस्ट अलग करके छानकर भंडारित कर लिया जाता है तथा पुनः इस पर गोबर आदि का ढेर लगाकर बेड बना लेते हैं।

चित्र:- क्यारी या बेड विधि से केंचुआ खाद बनाना


फोर-पिट (Four-Pit Method) विधि:-

                                                 इस विधि में चुने गये स्थान पर 12’x12’x2.5’(लम्बाई x चौड़ाई x ऊँचाई) का गड्‌ढा बनाया जाता है। इस गड्‌ढे को ईंट की दीवारों से 4 बराबर भागों में बांट दिया जाता है। इस प्रकार कुल 4 क्यारियां बन जाती हैं। प्रत्येक क्यारी का आकार लगभग 5.5’ x 5.5’ x 2.5’ होता है। बीच की विभाजक दीवार मजबूती के लिए दो ईंटों (9 इंच) की बनाई जाती है। विभाजक दीवारों में समान दूरी पर हवा व केंचुओं के आने जाने के लिए छिद्र छोड़ जाते हैं। इस प्रकार की क्यारियों की संख्या आवश्यकतानुसार रखी जा सकती है।

चित्र:- फोर-पिट विधि से केंचुआ खाद बनाना


परम्परागत कच्चा वर्मी टांका:-

                                       इस विधि में मिट्टी के टांकें बनाये जाते हैं। टांको का आकार पक्के टांको के जैसे 3×1×0.75 मीटर के ही होते हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि इस विधि में ईंट और सीमेंट का प्रयोग न करके मिट्टी और बांस बल्ली का उपयोग करते हुए टांके बनाये जाते हैं। जिनके ऊपर बांस बल्ली और पैर, घास फूस, टाट के छप्पर बनाये जाते हैं। टांके के अंदर सफेद पन्नी आधार के रूप में बिछाकर उसके ऊपर हरे कचरे और गोबर के परत लगाकर केचुआ खाद बनाया जाता है। इस विधि में लागत 2000 से भी कम आती है।


चित्र:- परम्परागत कच्चा वर्मी टांका (रायगढ़ विकासखंड, रायगढ़)


                            मैं आशा करता हूँ कि केंचुआ खाद के संबंध में जितनी भी जानकारी मैंने संकलित की है आपको अवश्य समझ में आयी होंगी। मित्रों वर्तमान में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा प्रदेश के गोठानों में गोधन न्याय योजना अन्तर्गत गोबर की खरीदी की जा रही है। खरीदे गए गोबर से गोठान में ही केंचुआ खाद बना कर इसका विक्रय किया जाना प्रस्तावित है। इससे राज्य में जैविक खेती को नई ऊर्जा एवं दिशा मिलेगी। कृषक जैविक खेती करने हेतु प्रेरित होंगे। क्योंकि रासायनिक उर्वरकों का यह मुख्य एवं उपयुक्त विकल्प है जो बिना किसी रसायन के सभी तत्वों की पूर्ति करता है। इसलिये मेरा इस लेख को संकलित कर लिखने का उद्देश्य है कि गोठानों में केचुआ खाद बनाने वाले लोगों को सही जानकारी एवं विधि सरल शब्दों में प्राप्त हो। अतः आप सभी से निवेदन है कि इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करते हुए सभी किसान भाइयों तक पहुंचाने में अपना योगदान देवें। किसी भी प्रकार के सुझाव हेतु आपकी प्रतिक्रियाओं का सादर स्वागत है।

          -:दाता राम नायक
          ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी
                           रायगढ़

7 टिप्‍पणियां:

  1. केचूए रायगढ cg कहाॅ मिलेगा

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    उत्तर
    1. रायगढ़ में केंचुआ खाद बनाने वाले किसानों से मिल जाएगा। जैसे जामपाली(उसरौट) रायगढ़ विकासखंड में गोलमणि पटेल जी है वृहद स्तर पर केंचुआ खाद बनाते हैं और केचुआ भी रखते हैं। बरमकेला के हिर्री गोठान में भी मिल जाएगा। लैलूंगा में मिल जाएगा।

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  2. बहुत बढ़िया तकनिकी जानकारी स्नेहिल दाता राम जी
    ऐसे जानकारी से किसानो को जानकारी मिलेगी ही अपितु इस क्षेत्र के प्रक्षेत्र कार्यकर्ता को भी लाभ मिलेगा बधाई

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    1. जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका, हृदय स्पर्श टिप्पणियों से मेरा उत्साह बढेगा।

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